यह कैसी असहनीय पीड़ा ,
अब तू जारे कोरोना ।
कैसा तेरा प्रहार ,
प्रकृति भी मौन रही निहार ,
सबका मन अशांत ,
कब होगा कहर शान्त ।
घर में खाने के लाले ,
बच्चों को कैसे पाले ।
गृह मे है जिन्दगी कैद ,
सब हो रहें पस्त ,
मानव जीवन हो रहा अस्त व्यस्त ।
सेवा भावी पुलिस डाक्टर ,
उनका भी है अपना परिवार,
इस पर करों विचार ,
कब तक थमेगा अत्याचार ,
है प्रभु अब आप ही पालनहार ,
बरसादों करूण रस की धार ,
सुनलो सबकी पुकार ।
लेखक : मनोरमा जोशी , इंदौर
- Prayas News MP